मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

वैलेनटाइन डे पर अपने वैलेनटाइन को समर्पित

पता नहीं क्यूँ वैलेनटाइन डे के इस पक्ष पर आज आँखे क्यूँ नम हो गयी और छलक पड़ी बीते पैंतीस बरस की यादों को बूंदों में समेट कर ।  आ गयी थी वो मेरी जिंदगी में निर्विकार कच्ची मिटटी की तरह एक नए रिश्ते की आड़ लेकर,  और न्योछावर कर दिया अपना तन, मन और आत्मा मेरे तथा मेरे परिवार के लिए, बना लिया वह अटूट रिश्ता जिसके टूटने का ख्वाब भी हृदय विदारक है.

 सच्चे अर्थों में  वैलेनटाइन डे पति-पत्नी के अटूट प्रेम का उत्सव मनाने का दिन है, जिस प्रेम की बुनियाद भी वो खुद रखते हैं, एक संसार बनाते है, आत्मसात कर लेते है उस संसार में खुशहाली लाने को अपने को और ख़त्म हो जाते है एक नए संसार की रचना कर के.
माँ के बाद अगर कोई पवित्र और निःस्वार्थ प्रेम करता है मनुष्य को इस संसार में तो वह है उसकी पत्नी. इस उत्सव पर्व पर उसको दो शब्द समर्पित करता हूँ :

कुछ जितने की चाह नहीं आपके बिनाँ
ज़न्नत सी ऐ ज़मीं उन्मुक्त आसमान ,
फिर जीत के भी क्या करेंगे आप ग़र न हों
फूलों को चुन के क्या करेगा उजड़ा बागबां,

चन्दन सी महकती है फिजां  सिर्फ आपसे
आ जाता है नज़रों में नूर सिर्फ आपसे
खुश है मेरा हर रोम रोम सिर्फ आपसे
सिर्फ आपसे हो जाता है दिल फिर से नौजवां
              कुछ जितने की चाह नहीं आपके बिनाँ.....

तेरी छुवन से लय मेरे लम्हों में आती है
यौवन की बुझी आग बस तू ही जगाती है
आँखें बचा के सबकी  अबभी छेड़ जाती है
फिर रूठ के करती मुझको अबभी परेशाँ
               कुछ जितने की चाह नहीं आपके बिनाँ.......

तुमने ही दिया है मुझे जीवन में सभी ख़ास
किलकारियां आँगन में और नित नया मधुमास
अश्कों को मेरे पोंछने बस तुम ही रहे पास
वर्ना सभी ने छोड़ दिया मेरा कारवां
                   कुछ जितने की चाह नहीं आपके बिनाँ......

गोपालजी

वैलेनटाइन डे पर अपने वैलेनटाइन को समर्पित