मंगलवार, 16 मार्च 2010

समाचार : माया की माला

बैठ गधे की पीठ बंदरिया बोली मेरे मित्र ,
लाई हूँ अख़बार आज का खबरें लिए विचित्र,   

समाचार : माया की माला

माला कर गयी गड़बड़झाला
माला में है खेल,
भारीभरकम देख के माला
कोई सका न झेल,
पहले हुई खुसुर-पुसुर,
और फिर सबने हंगामा काटा,
माला के आगे लगता है 
अपना कद सबको अब नाटा,
आपस में है तू तू-मैं मैं 
जनता को बेकूफ बनाना,
जनता सिर्फ पतीली है बस
जिसमे सब को खिड़की पकाना ,
मौसेरे भाई हैं सारे
झूठी है सब अनबन,
कोई ताज पहन हुआ राजा
कोई माला पहन टनाटन,
हम जनता हैं, किस्मत में बस  
घास है या कुछ जूठन,
लोकतंत्र ऐसा होता है
थोडा कर लें  मंथन,

गोपालजी  

दीवारों के कान

दीवारों के भी कान होते है,
आखिर कब तक खड़े-खड़े बोर होतीं 
इनके भी कुछ अरमान होते हैं,
इसलिए सुनती हैं, खूब सुनती हैं,
कुछ भी इनके बीच कहिये,
ये सुनेंगी, पर कहेंगी किसी से नहीं,
क्योंकि दीवारों के मुह नहीं होते,
कितना बड़ा दुर्भाग्य है इनका 
कि जानती तो सब हैं 
देखा सुना है सब 
पर बता नहीं सकतीं 
डरिये उनसे जिनके कान और मुह 
दोनों होते हैं,
और वही आपके गुप्त मसलों के 
सबसे बड़े दुश्मन होते हैं,
दीवारें बेचारी गवाही तक नहीं देतीं 
पर चर्चा उन्हीं के बारे में आम है,
खुराफात करते हैं दुसरे 
मुफ्त में दीवार बदनाम है,

         गोपालजी