शनिवार, 15 अगस्त 2009

जिंदगी

जिंदगी में अपनी से ज्यादा तुम्हारी गलतियों की सज़ा भोगते हैं हम, हमारे पैदा होने की वज़ह, ज़गह, परिवेश, संम्पन्नता, सुसंस्क्रतता और परवरिश का निर्धारण तुम करते हो हम नहीं । और कितने भोले हैं हम कि इसे अपने पूर्वजन्मों का फल मान कर संतोष कर लेते हैं । लेकिन कैसा न्याय है ऐ, कि गलती मालूम नही और भोगनी है सज़ा । क्योंकि तुम हो इस विशाल सत्ता के मालिक, हमें तुमसे पूंछने का हक नही और ज़वाब देना तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं । अपनी अपनी कहानी गढ़ कर बहलाते हैं ख़ुद को और भोगते हैं इस जिंदगी को हम । और कितनी विडम्बना है, जिंदगी चाहे कितनी भी कष्टदायी हो कितना प्रेम करते है इससे हम । रिस्ते हुए घावों और बहते हुए अश्कों के बीच भी प्यारी लगती है जिंदगी । " गोपालजी "

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

सरहद, मेरी ख्वाइश

सरहद का नाम सिर्फ़ हो यादों की ज़ुबां पर,
दिल से मिटा के नफरतें छा जायें दिलों पर ,
किस मुल्क के हैं हम, हमें ये होश ही न हो
फौंजों के बच न पायें निशां इस ज़मीन पर ,



बारूद को भी भेदने को शख्स ना मिले ,
तोपों मिसाइलों का कहीं अक्स ना मिले ,
परवरदिगार मेरे नबी इतना रहम कर
इंसानों में ढूंढे से कहीं रश्क ना मिले ,



नक्शे बने, फ़िर सरहदें, फ़िर जीतने की चाह ,
शस्त्रों के अट्टहास ने, रौंदी दिलों की आह,
बेवाओं, अनाथों के, अश्कों की नींव पर
बनते हैं देश , सरहदें और उनके शहंशाह ,



मज़हब की सरहदें तो, ज़मीं से हैं खतरनाक ,
इंसा बना हैवान , हुए अमन-ओ-चमन खाक ,
मज़हब के जुनूं में, हमें ऐ होश ही नहीं
हमने किया उस एक ही मालिक का जिगर चाक ,



हो एक पिता, एक विश्व, एक सरज़मीं ,
फ़िर हो न कभी, किसी घर में युध्ध की गमीं ,
फ़िर दर्द और ग़म का कहीं होगा ना निशां
गर होगा , तो छलकेगी हर एक आंख में नमीं ,



ज़र्रा हर एक तेरा है , फ़िर क्यों नुमाइश है ,
ताक़त तेरी है , हममें नूरा-आज़माइश है ,
मज़हब से , देश , सरहद से बढ़तीं हैं नफरतें
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,

शनिवार, 8 अगस्त 2009

पिंडदान

पिंडदान

पंडित की विद्वता पर

कोई शक करे और प्रशन पूछे

किसी की क्या है मजाल,

डर लगता है सबको

उस अनहोनी का

कि कहीं और न बिगड़ जाए

बिगडे वक़्त कि चाल,

चाहे ख़ुद अपने कर्मों से पाले हों

जिंदगी के सारे बवाल,

क्योंकि कोई पिता

बच्चों कि जिंदगी मैं

नहीं घोलता ज़हर

और नाही पालता कोई जंजाल,

पर पिंडदान और पूर्वजों को तर्पण के वक़्त

दरिया के किनारे

एक मसखरे यजमान ने

पण्डे से दाग दिया एक सवाल,

और पूँछ ही लिया

पंडित जी के स्वर्गवासी पितरों का हाल,

मेरे पितरों का उद्धार करने वाले श्रीमन

उस लोक मैं क्या है आपके पितरों का हाल,

पोथी - पत्रा से डरकर, जीकर या मरकर ,

रुपया दो रूपया, अन्न-जल, दाना - पानी

अपने पितरों को हम तो ऊपर पहुंचा देते ,

आप भी अपने पितरों को

ऐसा ही कुछ करते हैं

या उन्हें यूँ ही टरका देते हैं,

पिंडदान मैं चढा माल

बटोरता हुआ पंडा मुस्कराया

बोला हमें पुश्तों से

यजमानों का ही सहारा है,

इस लोक मैं हमें आपसे

उस लोक मैं हमारे बाप को

आपके पितरों से गुज़ारा है

ऊपर माल भेजने का जो चमत्कार

आप यहाँ हमसे करा रहे हैं,

उस लोक मैं हमारे बाप

आपके पितरों को

कुछ ऐसे ही चरा रहे हैं,

हमें एक तरफ़ लुटा हुआ

निर्विकार यजमान

दूसरी तरफ़ दरिया मैं उतराता

गिध्धों द्वारा नोचा जाता

निश्चेष्ट शव तो नज़र आ रहा था,

पर शव और यजमान की चेतना मैं

अन्तर क्या है

मैं यह नहीं समझ पा रहा था,

"गोपाल जी"




शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

दो शब्द मैं ख़ुद को व्यक्त करूं

ऐसी मेरी औकात नहीं,

दुनिया के दर्द मैं ख़ुद रोऊँ

इतने मुझमे ज़ज्बात नहीं,

फिर भी मेरा दिल करता है

सबके ज़ख्मों पर हाथ धरूं,

लेकिन इश्वर मंज़ूर करे

ऐसे करता हालात  नहीं

बुधवार, 5 अगस्त 2009

Swayamvar

Kahawat hai ki,
Geedar ki zab maut aati hai to wo shahar ki or aata hai,
Aur Sachchai hai ki,
Zab beti ki kismat phodani ho to baap uska swyamvar rachaata hai,
Mere sangyaan main,
Do bade etihasik swyamvaron ki misaal hai,
Zinko rachaane ka
Dono swargwasi baapon ko malaal hai,
Pahli swyamvar parinity Sita,
Jo daamptya jeevan ka zara bhi sukh nahi paayee,
Doosri Dropdi, jisne bhari sabha main apni durgati karaayee,
Tathaa, Vyaas jaise marmagya aur dharmgyaani
jo maanvataa ke hit main bahut kuch anya likh sakte the
se, Mahabharat jaise,
Bhaiyon ke yuddha se varnit granth ki rachanaa karaayee,
Swyamvar main varit patiyon ki kismat bhi
Bramhaa nahi koyee aur likhtaa hai,
Aisaa pati hota to hai raajaa
Par Sudaamaa se baddtar dikhtaa hai,
Raajpaat chhoot jaataa hai,
Sagaa rishtedaar maal loot jaataa hai,
Darbadr thokren khaate hai
Ghaas Phoos ke bistaron par sote hai,
Raat din varit patni ko haarne yaa khone ke gam main rote hai,
Aajkal phir Swyamvaron kaa chalan panap rahaa hai
Do swyamvar hi kaphee bhaaree pare the,
Zinhone laraayee maarkaat ke
zabardast aur dardnaak granth gadhe the,
Yaa Khuda, Tu mauj lene ke liye roz chamatkaar karta hai
Seriously koyee aisaa chakkar chalaa,
ki ab, Swyamvar se vivaahit jode kee
Tal jaaye har balaa,
"Gopalji"

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

स्वयंवर

कहावत है कि,

जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की ओर आता है,

और सच्चाई है कि,

जब लड़की की किस्मत फोडनी हो तो बाप उसका स्वयम्बर रचाता है,

मेरे संज्ञान में

दो बड़े एतिहासिक स्वयम्बरों की मिसाल है,

जिनको रचाने का

दोनों स्वर्गवासी बापों को आज तक मलाल है ,

पहली स्वयम्बर परिणिती सीता

जो दाम्पत्य जीवन का ज़रा भी सुख नही पाई,

दूसरी द्रोपदी, जिसने भरी सभा में अपनी दुर्गति कराई,

तथा व्यास जैसे मर्मज्ञ और धर्मज्ञानी,

जो मानवता के हित में बहुत कुछ अन्य लिख सकते थे,

से, महाभारत जैसे,

भाइयों के युद्ध से वर्णित ग्रन्थ की रचना कराइ,

स्वयंवर में वरित पतियों की किस्मत भी ब्रम्हा नही कोई और लिखता है,

ऐसा पति होता तो है राजा , पर सुदामा से भी बददतर दिखता है,

राजपाट छूट जाता है,

सगा रिश्तेदार माल लूट जाता है,

दरबदर ठोकरें खाते हैं, घासफूस के बिस्तरों पर सोते हैं ,

रातदिन वरित पत्नी को हारने या खोने के गम में रोते हैं,

आजकल फिर स्वयंवरों का चलन पनप रहा है

दो स्वयंवर ही काफी भारी पड़े थे,

जिन्होंने लडाई मारकाट के

ज़बदस्त और दर्दनाक ग्रन्थ गढे थे,

या खुदा, तू मौज लेने के लिए रोज़ चमत्कार करता है

सीरियसली कोई ऐसा चक्कर चला,

कि अब, स्वयंवर से वरित विवाहित जोड़े की

टल जाए हर बला ,

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

सत्य का पथ

सत्य का पथ बहुत कष्टप्रद होता है , गाँधी ने एहसास किया था और माँ सीता ने सहा था उसका दर्द, और वो सत्य के लिये लढे गए युध्ध के सुखद प्रतिफल का आनंद भी न ले सके अपने जीवन में ।
पर परमात्मा वास करता है उनके हृदय में जो सत्य पर चलते हैं , और परमात्मा के सानिध्य का एहसास ही जीवन का सर्वोच्च सुख होता है