शनिवार, 8 मई 2010

माँ

माँ को शब्दों में व्यक्त करूं
इतने मुझमें ज़ज्बात नहीं, 
भाषा, स्याही और कलम की भी 
विश्वास है ए औकात नहीं,
मेरी माँ क्या है मेरे लिए 
लिखना ही हास्यास्पद होगा
माँ साक्षात् खुद ईश्वर है
कोई ईश्वरीय सौगात नहीं,

                              गोपालजी 
           

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