मंगलवार, 16 मार्च 2010

दीवारों के कान

दीवारों के भी कान होते है,
आखिर कब तक खड़े-खड़े बोर होतीं 
इनके भी कुछ अरमान होते हैं,
इसलिए सुनती हैं, खूब सुनती हैं,
कुछ भी इनके बीच कहिये,
ये सुनेंगी, पर कहेंगी किसी से नहीं,
क्योंकि दीवारों के मुह नहीं होते,
कितना बड़ा दुर्भाग्य है इनका 
कि जानती तो सब हैं 
देखा सुना है सब 
पर बता नहीं सकतीं 
डरिये उनसे जिनके कान और मुह 
दोनों होते हैं,
और वही आपके गुप्त मसलों के 
सबसे बड़े दुश्मन होते हैं,
दीवारें बेचारी गवाही तक नहीं देतीं 
पर चर्चा उन्हीं के बारे में आम है,
खुराफात करते हैं दुसरे 
मुफ्त में दीवार बदनाम है,

         गोपालजी
  

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