बैठ गधे की पीठ बंदरिया बोली मेरे मित्र ,
लाई हूँ अख़बार आज का खबरें लिए विचित्र,
समाचार : माया की माला
माला कर गयी गड़बड़झाला
माला में है खेल,
भारीभरकम देख के माला
कोई सका न झेल,
पहले हुई खुसुर-पुसुर,
और फिर सबने हंगामा काटा,
माला के आगे लगता है
अपना कद सबको अब नाटा,
आपस में है तू तू-मैं मैं
जनता को बेकूफ बनाना,
जनता सिर्फ पतीली है बस
जिसमे सब को खिड़की पकाना ,
मौसेरे भाई हैं सारे
झूठी है सब अनबन,
कोई ताज पहन हुआ राजा
कोई माला पहन टनाटन,
हम जनता हैं, किस्मत में बस
घास है या कुछ जूठन,
लोकतंत्र ऐसा होता है
थोडा कर लें मंथन,
गोपालजी
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