काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
तेरे प्यारे बचपन को काहे खुद मार दिया,
हाथों को मल के भी अब क्या मिलना है ,
दर्दे-विदाई को अश्कों से सिलना है,
तेरे भोलेपन का काहे, मैंने न विचार किया
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
सूना हुआ कांधा मेरा, सूना हुआ आँगन,
नीर बहाएँ नैना, बोझिल है तनमन,
तुतली बोली से काहे, तुने इतना प्यार दिया,
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
जाए जहाँ तू बिट्टी, सदा मुस्कराए
नैन न होयें गीले, दिल गुनगुनाये
महकाए जाकर जो प्रभु ने, तुझे घर-द्वार दिया,
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
इस घर से नाता अपना, भूल न जाना
ख़ुशी हो या ग़म इस घर का, साथ निभाना
रब ने सिर्फ बेटी को दो घर का अधिकार दिया
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
गोपालजी
बिट्टी कि विदाई
The blog consists my thoughts, bhajans, vyangs, devoted ghazals, my attainments from life and overall a logical view with traditions and all other aspects of life i.e. culture, emotionals, relationship, faith and devotions etc.
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
बिट्टी क़ी विदाई
बिट्टी क़ी विदाई
बिट्टी काहे मैंने तुझे, गोदी से उतार दियाबचपन को तेरे मैंने, काहे खुद मार दिया
हाथों को मल के भी, अब क्या मिलना है
दर्द भरे दिल को बस, अश्कों से सिलना है
तेरे भोलेपन का मैंने, काहे न विचार किया
बिट्टी काहे मैंने तुझे, गोदी से उतार दिया
इस घर से नाता अपना, भूल न जाना
नया घर मिला है, पर ए तेरा है पुराना
जिसे तुने ही अपने हाथों से संवार दिया
बिट्टी काहे मैंने तुझे, गोदी से उतार दिया
सूना लगे कंधा मेरा, सूना लगे आँगन
अश्क बहाएं आँखें, बोझिल है तन-मन
काहे डैडी/मम्मी कह के तुने, मुझे इतना प्यार दिया
बिट्टी काहे मैंने तुझे, गोदी से उतार दिया
जाए जहाँ तू बिट्टी, सदा मुस्कराए
नैन न होयें गीले, दिल गुनगुनाये
महकाए, इश्वर ने तुझे जो घर-द्वार दिया
बिट्टी काहे मैंने तुझे, गोदी से उतार दिया
गोपालजी / मीनाक्षी
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