काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
तेरे प्यारे बचपन को काहे खुद मार दिया,
हाथों को मल के भी अब क्या मिलना है ,
दर्दे-विदाई को अश्कों से सिलना है,
तेरे भोलेपन का काहे, मैंने न विचार किया
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
सूना हुआ कांधा मेरा, सूना हुआ आँगन,
नीर बहाएँ नैना, बोझिल है तनमन,
तुतली बोली से काहे, तुने इतना प्यार दिया,
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
जाए जहाँ तू बिट्टी, सदा मुस्कराए
नैन न होयें गीले, दिल गुनगुनाये
महकाए जाकर जो प्रभु ने, तुझे घर-द्वार दिया,
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
इस घर से नाता अपना, भूल न जाना
ख़ुशी हो या ग़म इस घर का, साथ निभाना
रब ने सिर्फ बेटी को दो घर का अधिकार दिया
काहे मैंने बिट्टी तुझे गोदी से उतार दिया,
गोपालजी
बिट्टी कि विदाई
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