फागुन ने मस्ती घोली है ,
मनो बुरा, तो मानो तुम
छेड़ेंगे, आज तो होली है,
रंग कचनार के ,रंग गुलाब के, और रंग नीले पीले,
चिपक गए अंगों में सबके, सूखे हों या गीले,
मस्त तरंग में झटकी बुडिया, लागत छैल-छबीली है,
छेड़ेंगे, आज तो होली है,
बिना पिए मेरे उनके नैना, हो गए आज नशीले,
दिखा-दिखा के मस्त अदाएं, मारे बाण कटीले,
कल तक थी जो तीखी हम पर, रस से भरी वो बोली है,
छेड़ेंगे, आज तो होली है,
चरित्र पर भी चढ़ते हैं. रंगों ने किया कमाल,
पिछले साल जो नीले थे, इस साल हुए वो लाल,
कौन नशे में कहाँ गिरा, रंगों ने पोल ऐ खोली है
छेड़ेंगे, आज तो होली है,
गोपालजी
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