दुशासन को उसके दुस्साहस का सबक सिखाकर
सांप सूंघ गयी सभा के बीच
विजयी अदा से द्रोपदी मुस्कराई,
गुर्रा कर बोली
तुम क्या चीर हरोगे
मैं खुद उतार आई,
जैसे पांच, वैसे एक सों पांच,
कायरों के हुजूम से कैसा डर कैसी आंच,
सभा में सन्नाटा छा गया,
बाँकुरे गश खा गए
चमचों को मज़ा आ गया,
पराजित दुश्शासन
सभा से भागने की ताक़ में था,
क्रुद्ध दुर्योधन
शकुनी को पीटने की फिराक में था,
साले ने कहाँ का दांव लगा दिया,
बाज़ी तो जीती
पर मुसीबत में फंसा दिया,
इससे अच्छा भीम को जीत लेते,
चकाचक मालिश कराते
मौके-बेमौके पीट लेते,
उल्टा नज़ारा देख
ध्रतराष्ट्र ने जैसे ही कृष्ण को पुकारा,
फुंफकारते हुए द्रौपदी ने
उसे झन्नाटेदार थप्पड़ मारा,
क्रुद्ध होकर बोली
बोल किसे बुलाता है,
क्या अखबार नहीं पढता
रोज़ हजारों नारियां निर्वस्त्र की जाती हैं
क्या कभी वो आता है,
मुर्ख तेरी शिक्षा तो निरी अधूरी है,
नहीं जानता कि क्लीन-बोर्ड करने को
बोल्ड होना ज़रूरी है,
" गोपालजी "
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