बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

में तेरी प्यारी बिट्टी,

मैं तेरी प्यारी बिट्टी, गोदी से उतरी क्यूँ 
पापा मेरे बोलो ना , मैं तुमसे बिछड़ी क्यूँ 


झूल-झूल गोदी में, मैं तेरी सोती थी 
ले लोगे गोदी तुम, झूठ-मूठ रोती थी
बचपन रूठ गया, किस्मत बिगरी क्यूँ 
                   पापा मेरे बोलो ना........
छोड़ के ना जाओ कहीं, जूतियाँ छिपाती थी 
पापा तेरी लाडली में, तुमको सताती थी,
घड़ियाँ वो बचपन की , पापा बोलो बिखरी क्यूँ 
                    पापा मेरे बोलो ना...........
पैंया-पैंया तुमने मुझे  चलना सिखाया 
दुनियां को समझ सकूँ इतना पढ़ाया 
पर मैं मूढ़ तेरे द्वारे से निकरी क्यूँ 
                     पापा मेरे बोलो ना..........
अब शायद पापा हमें ऐसे ही जीना है 
यादों को बचपन की सीने में सीना है
पापा पर ईश्वर की ऐसी है नगरी क्यूँ 
                      पापा मेरे बोलो ना........
डोले को यादों के दिल में दबाना है
सच के थपेड़ों में गुम हो जाना है 
सीने में सिली यादें अंखियों से निकरी क्यूँ
                      पापा मेरे बोलो ना .......


                        " गोपालजी "  

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