शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

दो शब्द मैं ख़ुद को व्यक्त करूं

ऐसी मेरी औकात नहीं,

दुनिया के दर्द मैं ख़ुद रोऊँ

इतने मुझमे ज़ज्बात नहीं,

फिर भी मेरा दिल करता है

सबके ज़ख्मों पर हाथ धरूं,

लेकिन इश्वर मंज़ूर करे

ऐसे करता हालात  नहीं

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