शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

सरहद, मेरी ख्वाइश

सरहद का नाम सिर्फ़ हो यादों की ज़ुबां पर,
दिल से मिटा के नफरतें छा जायें दिलों पर ,
किस मुल्क के हैं हम, हमें ये होश ही न हो
फौंजों के बच न पायें निशां इस ज़मीन पर ,



बारूद को भी भेदने को शख्स ना मिले ,
तोपों मिसाइलों का कहीं अक्स ना मिले ,
परवरदिगार मेरे नबी इतना रहम कर
इंसानों में ढूंढे से कहीं रश्क ना मिले ,



नक्शे बने, फ़िर सरहदें, फ़िर जीतने की चाह ,
शस्त्रों के अट्टहास ने, रौंदी दिलों की आह,
बेवाओं, अनाथों के, अश्कों की नींव पर
बनते हैं देश , सरहदें और उनके शहंशाह ,



मज़हब की सरहदें तो, ज़मीं से हैं खतरनाक ,
इंसा बना हैवान , हुए अमन-ओ-चमन खाक ,
मज़हब के जुनूं में, हमें ऐ होश ही नहीं
हमने किया उस एक ही मालिक का जिगर चाक ,



हो एक पिता, एक विश्व, एक सरज़मीं ,
फ़िर हो न कभी, किसी घर में युध्ध की गमीं ,
फ़िर दर्द और ग़म का कहीं होगा ना निशां
गर होगा , तो छलकेगी हर एक आंख में नमीं ,



ज़र्रा हर एक तेरा है , फ़िर क्यों नुमाइश है ,
ताक़त तेरी है , हममें नूरा-आज़माइश है ,
मज़हब से , देश , सरहद से बढ़तीं हैं नफरतें
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,
दिल से मिला दे दिल , या रब बस यही ख्वाइश है ,

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