मंगलवार, 4 अगस्त 2009

स्वयंवर

कहावत है कि,

जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की ओर आता है,

और सच्चाई है कि,

जब लड़की की किस्मत फोडनी हो तो बाप उसका स्वयम्बर रचाता है,

मेरे संज्ञान में

दो बड़े एतिहासिक स्वयम्बरों की मिसाल है,

जिनको रचाने का

दोनों स्वर्गवासी बापों को आज तक मलाल है ,

पहली स्वयम्बर परिणिती सीता

जो दाम्पत्य जीवन का ज़रा भी सुख नही पाई,

दूसरी द्रोपदी, जिसने भरी सभा में अपनी दुर्गति कराई,

तथा व्यास जैसे मर्मज्ञ और धर्मज्ञानी,

जो मानवता के हित में बहुत कुछ अन्य लिख सकते थे,

से, महाभारत जैसे,

भाइयों के युद्ध से वर्णित ग्रन्थ की रचना कराइ,

स्वयंवर में वरित पतियों की किस्मत भी ब्रम्हा नही कोई और लिखता है,

ऐसा पति होता तो है राजा , पर सुदामा से भी बददतर दिखता है,

राजपाट छूट जाता है,

सगा रिश्तेदार माल लूट जाता है,

दरबदर ठोकरें खाते हैं, घासफूस के बिस्तरों पर सोते हैं ,

रातदिन वरित पत्नी को हारने या खोने के गम में रोते हैं,

आजकल फिर स्वयंवरों का चलन पनप रहा है

दो स्वयंवर ही काफी भारी पड़े थे,

जिन्होंने लडाई मारकाट के

ज़बदस्त और दर्दनाक ग्रन्थ गढे थे,

या खुदा, तू मौज लेने के लिए रोज़ चमत्कार करता है

सीरियसली कोई ऐसा चक्कर चला,

कि अब, स्वयंवर से वरित विवाहित जोड़े की

टल जाए हर बला ,

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