सरस्वती वंदना
जय माँ वीनावादिनी, हे माँ, हर दिल मैं खुशबू भर दे ,
मुस्काए हर जीवन माते, सबको जीभर अम्बर दे .
आये हैं हम शरण में तेरी, अभिलाषा में लेखन की ,
भाव व चिंतन के संग हमको शक्ति भी दो सच देखन की
डर से सत्य न ठुकरा दें हम, हे माँ निडर हमें कर दे
हे माँ ...........
विचलित ना हो जाएँ पथ से, संघर्षों में घबरा कर
मन का बल कहि टूट न जाये, अपनी ही पीड़ा से डरकर
शक्ति और सामर्थ्य भी देना जो लेखन को संबल दे
हे माँ ...............
अपनी वेदना और सुखों से सिर्फ रंगें ना प्रष्ठों को
लेखन में माँ हम छलकाएं मानवता के कष्टों को
जन जन के माँ काम जो आये वह लेखन मुझमें भर दे
हे माँ ...............
दी है लेखनी, दी है स्याही, तुने ही माँ भाव दिए
भाषा, बुद्धि, शब्द, चिंतन और सर्वग्राम्ह्य उदगार दिए
तेरी प्रेरणा, तुझमें निष्ठां सदा रहे मुझको वर दे
हे माँ ..............
गोपाल जी ............
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