बुधवार, 20 जनवरी 2010

बेदर्द से शिकायत

ज़मीं के होते होंगे, पर समंदर बिन किनारे हैं
और उस पर डोलती नैया पे हम तेरे सहारे हैं
सहम कर करते हैं फरियाद, हर तूफां की आहट पर
अभी प्यारा न कर हमको, ख़ुदा हम तेरे प्यारे हैं .
                      ज़मीं के होते होंगे................
बहा के थक चुके आंसू, ऐ ज़ालिम अब रहम कर दे
इन्तहां हो चुकी, कहरों को अपने अब ख़तम कर दे
ज़ख्म पे ज़ख्म, और उसपे ज़ख्म देके क्या मिला तुझको
रहम बेचारगी पर कर हमारी, हम बेचारे हैं
                     ज़मीं के होते होंगे ..........
सितमगर नाम है तेरा, ऐ पुख्ता हो चूका सब पर
बाँट के दर्द सोता तू है, रौशन  हो चूका सब पर
और उस पर भी सितम ऐ है, कि हम तुमसे ही रोते हैं
क्योंकि तू बन गया दिलवर, और हम सब दिल के मारे हैं
                    ज़मीं के होते होंगे...........
ज़रा सा मोड़ दे कश्ती, जिधर खुशियों कि महफ़िल है
न ख्वाईश ऐ मसल, आखिर हमारा दिल भी तो दिल है
न बैठा तू फ़लक पर, या ख़ुदा थोड़ी ज़मीं तो दे
नज़र आते हैं वाकई, हम सभी को दिन में तारे हैं
                    ज़मीं के होते होंगे.....................


                          " गोपालजी "  

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