गुरुवार, 21 जनवरी 2010

बेटे की चिठ्ठी

मम्मी, मेरी चिंता मत करना
डैडी से भी कहना, न लें टेंशन मेरी फिक्र से,
उलझाये रखना उनको, बेवजह के ज़िक्र से,

माम, तुमने कहतीं थीं ,
मैं गोद में,  तुम्हारे आँचल को पकड़
तुम्हें ही देखता रहता था
आँचल मुठ्ठी से कब छूट गया
तुमने बताया नहीं,
मेरे तुम्हारे बीच कब ऐ जहाँ आ गया
कभी समझाया नहीं,

आज फिर, तुम्हारे आँचल को पकड़
तुम्हारी गोद में
पहले जैसे निश्चिन्त
सोने का मन करता है
लेकिन तुम पास हो तब ना,
और अब लगता है यह सपना,

बागवां तो खाद-पानी देकर
आस बाँध कर
निश्चिन्त हो जाता है,
बीज को ही संघर्ष कर
अपनी जड़ें ज़माना होता है,
कौन चाहता है अपनी जड़ों दूर रहना,
लेकिन यह नियति है
हंस कर या रोकर
पड़ता ही है दर्द सहना,

माम अपने अश्कों से कहना,
प्लीज़ अब न बहना,
मेरा भी दिल कमज़ोर हो जाता है,
लाख रोकने के बावजूद
आँख के कोने से ढलक कर आंसू
की-बोर्ड को गीला कर ही जाता है,
                - तुम्हारा अस्तित्व-

            
        " गोपालजी "


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