सोमवार, 18 जनवरी 2010

ख़फ़ा भाई

मै और मेरा प्यारा भाई, एक थाली में खाते थे,
सुख दुःख में हम, उस भाई के पहलू में सो जाते थे,
आज ख़फ़ा है भाई हमसे, दिल घुट-घुट कर रोता है,
खो गए दिन ज़ब मेरे आंसू, उन आँखों से आते थे,

खेले थे हम इन गलियों में, तब ना कोई  बंधन था,
उसकी धड़कन से ही, मेरे दिल में भी स्पंदन था ,
सोंचें ग़र ईमान हम इस ख़ुदा को भी नाजिर करके ,
बेरहम ज़ुदाई लम्हों में, दोनों के दिल में क्रंदन था ,

जुदा भाई हमसे मिलने को, दिल ही दिल में तड़प रहा,
जाएं मना लें हम उसको, बस इस मकसद से झड़प रहा,
मानें ख़ता हुई दोनों से, और अब अमन बहाल करें
माफ़ करें हम एक दूजे को, पहले  जैसा प्यार करें,

                                 " गोपालजी "

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