बुधवार, 27 जनवरी 2010

प्रभु

हमारे अंतस कि व्यथा और उस दिव्य, अलोकिक एवं सत्य कि खोज तभी समाप्त हो सकती है ज़ब हम अपने आराध्य को वापस अपने मन में स्थित कर लेंगें जिसे हमने मन से दूर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में सज़ा रखा है.
                                            गोपाल जी  

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