मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गुरु

तर्क सदैव विधि, नियम, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक समर्पण को परास्त करता आया है नित नए मजहबों का उदय सिद्ध करता है कि उसके अनुयाइयों ने किन्हीं तर्कों  से परास्त होकर ही नए की प्रासंगिकता स्वीकार की और उसे पहले से श्रेष्ठ माना, इतिहास गवाह है की हर धर्म में परिस्थितियों एवं तर्क ने प्रभाव डाला तथा हमारी पद्वातियो और आस्थाओं तक पर आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला.


शंकराचार्य, विवेकानंद, कबीर, बुद्ध जैसे आदि संत तर्क और शास्त्रार्थ के उपरांत ही नए मजहबों को गढ़ सके या अपना सिद्धांत प्रतिपादित कर आध्यात्म के उच्च शिखर को प्राप्त कर सके.  राजा राम मोहन राय जैसा असाधारण व्यक्तित्व तर्क के आधार पर ही सती प्रथा जैसी निर्दय एवं क्रूरतम परम्परा का अनुसरण समाप्त करा पाए 


अतः  जो आध्यात्मिक गुरु कहता है कि परमात्मा और आस्था में तर्क नहीं किया जाता, सिद्ध करता है कि उसकी अपनी आस्थाएँ कमज़ोर नीव पर खड़ी हैं. उसका उद्देश्य सत्य को जानना नहीं, अपनी कहानियों में चेलों को मस्त रखना है और माल बनाना है.


आज तक जितने भी गुरु याद किये जाते है अपने उस विलक्षण शिष्य की श्रेष्ठता के कारण ही याद किये जाते है जिसने अपनी  प्रतिभा  के बल पर नई ऊँचाइयों को हासिल किया तथा अपने साथ-साथ अपने गुरु का नाम भी रौशन किया. अगर गुरु में विशिष्टता होती तो उसका हर शिष्य पर्मात्मप्राप्त और श्रेष्ठ होता. विलक्षणता तो कबीर, कृष्ण और मीरा में थी जिन्होंने रामानंद, संदीपन और रैदास को अमर कर दिया.


अतः डर त्यागो और तर्क करो गुरुओं से आध्यात्म पर, परमेश्वर की प्राप्ति पर और मुक्त हो जाओ छद्म गुरुओं के चुंगुल से जो अपने वाक्जाल से तुम्हें बहला कर तुम्हारी माया लूटने के लिए ही दूकान खोले है .  


स्वयं सोंचिये जो गुरु परमात्मप्राप्ति जैसा असीम सुख छोड़कर चेलों में लिप्त हो क्या उसे परमात्मा प्राप्त है ?


                                                         गोपालजी  




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें